
सफ़र मोहन से महात्मा तक का...गांधीवाद - पूर्णिमा कौशिक
सफ़र मोहन से महात्मा तक का...
शक्ति का पर्याय जब मात्र प्रदर्शन नहीं अपितु आत्म उत्थान हो, प्रतिस्पर्धी जहाँ कोई दूसरा नहीं अपितु आपके अपने ही व्यक्तित्व का कमजोर पहलू हो,बात जब शारीरिक बल की नहीं अपितु आत्मबल की हो तो एक नाम जेहन में स्वत: ही आ जाता है गांधी,क्योंकि जिस आत्म बल की बात की जा रही है उसे प्राप्त करने का सबसे बड़ा मार्ग है सत्य का मार्ग ।
गांधी जी स्वयं ये मानते थे कि सत्य ही किसी भी व्यक्ति के आत्म बल का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इसके लिए गांधी जी ना केवल साध्य बल्कि साधन की पवित्रता पर भी बल देते हैं अर्थात आपका लक्ष्य और उसे प्राप्त करने का माध्यम दोनों ही सत्य और पवित्रता पर आधारित होने चाहिये।
सत्य से बड़ा कोई ईश्वर नहीं है और सत्य से ही आत्मा की शुद्धता प्राप्त होती है। जिस राम राज्य की हम बात करते हैं गांधी जी ने वास्तव में उसे जिया। राम ने सदैव सत्य का मार्ग चुना जो होता तो सबसे सीधा है पर उस पर चलना सबसे ज्यादा मुश्किल।सामान्यतः विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति या तो विद्रोही बन जाता है या फिर लाचार। पर गांधी जी ने इन दोनों ही मार्गों को अस्वीकार कर तीसरा मार्ग चुना अहिंसा का मार्ग।जिसका आधार है वो आत्मिक बल जो सत्य के अनुसरण से आता है। हम जितना सत्य के मार्ग पर चलते हैं आत्मिक रूप से उतने ही सशक्त बनते हैं।इसीलिए न तो गांधी कभी अंग्रेजों के विद्रोही रहे और न ही उनकी शोषण कारी नीतियों के सामने झुके बल्कि अपनी अहिंसाकारी सत्याग्रह की नीति से उनके द्वारा किये जा रहे शोषण का, उनकी गलत नीतियों का विरोध किया।
उनका शोषण का, उनकी गलत नीतियों का विरोध किया। ये विरोध केवल अंग्रेज़ों या उनके शासन तक सीमित नहीं था बल्कि हर उस प्रथा के खिलाफ था जो किसी भी व्यक्ति का शोषण करे। तभी तो बचपन से शारीरिक रूप से एकदम दुर्बल, व्यवहार से अत्यंत शर्मिला, संकोची, स्वभाव का मोहन जो किसी भी प्रकार से देखने में अत्यंत आकर्षक डील डॉल का व्यक्ति नहीं था। सत्य से प्राप्त इस आत्मिक बल से इतना शसक्त बन गया कि उस समय की सबसे शसक्त, सम्पन्न और महान शक्ति के सामने अकेला ही एक चट्टान की तरह उठ खड़ा हुआ और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने की उनकी इसी सोच ने समाज के सबसे निम्न, कमजोर, असहाय व्यक्ति को उसका अधिकार प्राप्त करने की शक्ति दी उसका साथ दिया, सहयोग किया।
इस प्रकार समाज के हर तबके, हर व्यक्ति, हर आम इंसान से गांधी खुद को जोड़ पाये। जन जन में उन्होंने जागृति की ऐसी चेतना उत्पन्न की कि चाहे देश हो या विदेश हर कोई उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए उठ खड़ा हुआ और एकता का ऐसा जन सैलाब आया जिसकी समग्रता ने उन्हें मोहन से महात्मा का दर्जा दिलाया।
गांधीवाद।
पूर्णिमा कौशिक